Tuesday, February 15, 2011


अभी जो धूल बैठ रही है
चीज़ों पर,
उसे बैठना ही है
क्‍योंकि वह उड़ चुकी है।
वह झाड़ी जायेगी
सभी महाद्वीपों की चादरों से
बहुत मेहनत, तरतीब और सलीके के साथ।
फिर एक बार इन्‍द्रधनुष की
प्रत्‍यंचा खिंचेगी और छूटेगी
और तीर की तरह यह सदी
एक नयी बड़ी दुनिया में जा गिरेगी।
                        -शशिप्रकाश

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