कठिनाइयों से रीता जीवन मेरे लिए नहीं,
नहीं,
मेरे तूफानी मन को यह स्वीकार नहीं।
मुझे तो चाहिए एक महान ऊंचा लक्ष्य
और उसके लिए ताउम्र संघर्षों का अटूट सिलसिला।
ओ कला! तू खोल
मानवता की धरोहर
अपने अमूल्य कोषों के द्वार मेरे लिए खोल!
अपनी प्रज्ञा और संवेगो के आलिंगन में
अखिल विश्व को बांध लूंगा मैं !
आओ,
हम बीहड़ और कठिन सुदूर यात्रा पर चलें
आओ, क्योंकि छिछला निरुद्देश्य और लक्ष्यहीन
जीवन हमें स्वीकार नहीं।
हम, ऊंघते कलम घिसते हुए
उत्पीड़न और लाचारी में नहीं जियेंगे।
हम - आकांक्षा, आक्रोश, आवेग और
अभिमान से जियेंगे।
असली इंसान की तरह जियेंगे !
- कार्ल मार्क्स (1836,जब वे 18 वर्ष के थे)
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