Wednesday, January 05, 2011



अगर मेरी कविताएं पसन्‍द नहीं
उन्‍हें जला दो ,
अगर उसका लोहा पसन्‍द नहीं,
उसे गला दो,
अगर उसकी आग बुरी लगती है,
दबा डालो,
इस तरह बला !!
लेकिन याद रखो
वह लोहा खेतों में तीखे तलवारों का जंगल बन सकेगा
मेरे नाम से नहीं, किसी और नाम से सही,
और वह आग बार-बार चूल्‍हे में सपनों-सी जागेगी
सिगड़ी में ख्‍़ायालों सी भड़केगी, दिल में दमकेगी
मेरे नाम से नहीं किसी और नाम से सही।
लेकिन मैं वहां रहूंगा,
तुम्‍हारे सपनों में आऊंगा,
सताऊंगा
खिलखिलाऊंगा
खड़ा रहूंगा
तुम्‍हारी छाती पर अड़ा रहूंगा।

-मुक्ति‍बोध

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