एक दिन मेरी कविताओं से
झांका मेरे बचपन ने
उत्सुक निगाहों से
और मैने एक मां की तरह
महसूस किया।
मैंने खोज निकाला
अपना गर्म हृदय
और आग की खोज की एक बार फिर।
एक दिन मैंने लोरी सुनी
किसी के गीतों में
और सोती हुई
सपनों में तैरने के लिए
पंखों की खोज की एक बार फिर।
एक दिन मैंने बत्तखों को देखा
झील की सतह पर प्यार करते
और पानी काटने के लिए
चप्पू ईजाद किए फिर से।
एक दिन मैंने देखा
एक बूढ़ी स्त्री का उन्मत्त नृत्य
और पहियों का आविष्कार किया
एक बार फिर।
-कविता कृष्णपल्लवी
No comments:
Post a Comment