Wednesday, January 12, 2011

नदी



नदी
शिकायत नहीं करती
कभी
ठहरे हुए किनारों से।
वह
उन्‍हें समझती है
और बहती है
चुपचाप।
कभी-कभार
कई बरसों बाद
बढ़ि‍याती है नदी।
किनारों को लांघती है
तोड़ डालती है
तटबंधों को।

             -कविता कृष्‍णपल्‍लवी

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