हर नयी चीज़, यदि सतत् परिवर्तन की प्रक्रिया से नहीं गुजरती, तो एक दिन रूढ़ि बन जाती है। क्रांतिकारी विचारों की प्रणाली और उस पर आधारित विभिन्न प्रकार के ढांचे भी यदि बदलते नहीं रहते तो अश्मीभूत होकर जीवन की गति के अवरोध बन जाते हैं।
विचारों में, संस्थाओं में, जीवन में सतत् क्रांति की दरकार होती है। यह बात उनके जीवन पर विशेष रूप से लागू होती है जो पूरे समाज के जीवन के ढंग-ढर्रे में क्रांतिकारी बदलाव लाना चाहते हैं।
हम यदि वैज्ञानिक क्रांतिकारी हैं तो हमारे अपने जीवन, रिश्तों और संस्थाओं के कुछ नियम ज़रूर होंगे, पर वे रूढ़ जड़-सूत्र नहीं होंगे। वे समय-समाज-सापेक्ष नियम होंगे।
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