लेखकों की एक बैठकी में स्त्रियों के बारे में बातें हो रही थीं। तोलस्तोय चुपचाप सुनते रहे। फिर सबको टोकते हुए उन्होंने निर्णय दिया, ''स्त्रियों के बारे में या तो ईश्वर जानता है, या फिर तोलस्तोय।'' लोगों ने जब आग्रहपूर्वक स्त्रियों के रहस्य के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, ''जब मेरी कब्र खुद जायेगी तो उसमें पैर लटकाकर बैठने के बाद स्त्रियों के बारे में आख़िरी सच्चाई बताकर मैं कब्र में कूद जाऊंगा।''
बात सौ टके की है। उत्पीड़ितों की अपनी दुनिया होती है। अपने राज वे कभी भी उत्पीड़िकों के साथ शेयर नहीं करते। पुरुष जब प्रेम में दीवाना होता है तो अन्तरंग क्षड़ों में भी स्त्री अपना अर्न्तमन पूरी तरह से खोलकर नहीं रखती। उत्पीड़ितों को जीने के लिए चालाक (पुरुषों की दृष्िट से धूर्त या काइयां) होना ही पड़ता है। स्त्रियां प्राय: भोली नहीं होती। भोलापन या तो उनका हथियार होता या ढाल या विवशता। जो भोली है, वह मारी जायेगी। प्राय: स्त्रियां आसानी से पुरुषों को अपनी वफ़ादारी का क़ायल बना लेती हैं। यह जीने के लिए उनकी विवशता होती है। साथ ही, वे पुरुषों को उल्लू भी बनाती हैं और इस तरह अपने उत्पीड़न का बदला लेती हैं।
जो ऐसा नहीं करतीं वे या तो पाशविक उत्पीड़न या डिप्रेशन का शिकार होती हैं, या फिर सामाजिक बंधनों को तोड़कर मुक्ितकामी कतारों में अपनी जगह तलाशती हैं।
जो ऐसा नहीं करतीं वे या तो पाशविक उत्पीड़न या डिप्रेशन का शिकार होती हैं, या फिर सामाजिक बंधनों को तोड़कर मुक्ितकामी कतारों में अपनी जगह तलाशती हैं।
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