Sunday, January 02, 2011

सपने देखने की क्षमता, विद्रोह करने का साहस



नेतृत्‍व-क्षमता महज प्रबन्‍ध-कौशल का नाम नहीं है। यदि आप लोगों को सपने देखना, यथास्थिति से नफरत करना और विद्रोह करना नहीं सिखा सकते, यदि आप लोगों के रोज़मर्रे के जीवन में ताज़ा हवा बनकर नहीं जा सकते तो आप लोगों पर हुकूमत  कर सकते हैं, उन्‍हें पिछलग्‍गू बना सकते हैं, पर उन्‍हें नेतृत्‍व नहीं दे सकते हैं। सच्‍चा नेतृत्‍व देने के लिए सांगठनिक कौशल, अनुभव, तकनीकी योग्‍यता आदि से बहुत अधिक ज़रूरी है कि आप खुद सच्‍चे मनुष्‍य हों और आपमें सपने देखने और विद्रोह करने की माद्दा हो। यदि आपमें यह क्षमता नहीं है तो आप लगातार क्रांतिकारी आदर्शों की बात करते हुए खुद से ही छल करते होते हैं एक पाखण्‍डी बन रहे होते हैं और धीरे-धीरे पतन की ढलान पर उतर रहे होते हैं। सच बोलना और सच का सामना करना सर्वोपरि क्रांतिकारी गुण है।

क्रांतिकारी वाम संगठनों में भी कई बार अनुभव और उम्र के सहारे और कुछ तकनीकी-व्‍यावहारिक योग्‍यताओं के बूते कुछ लोग नेतृत्‍व से चिपके रहते हैं और नकली इज्‍़जत की हिफाज़त के लिए टुच्‍चेपन, झूठ और पाखण्‍ड का भी सहारा लेते रहते हैं। यह खुद उनके लिए भी ख़तरनाक होता है, बाकी सबके लिए तो होता ही है।

एक प्रबंधक केवल क्‍लर्क पैदा कर सकता है और क्‍लर्कों का रहनुमा हो सकता है। और सच्‍चाई यह है कि क्‍लर्क प्रबंधक को उल्‍लू बनाकर अपना बदला चुकाते रहते हैं।

हम मध्‍यवर्ग से आये हुए लोग चाहे जितने भी सीधे और विनम्र दीखते हों, किसी न किसी स्‍तर का नेता या ''कुछ खास'' बनने की चाहत हमारे ख़ून में घुली हुई है। इससे मुक्‍त होना इतना आसान नहीं होता।

नेतागिरी के अतिरिक्‍त दूसरी चाहत हमारी सुविधा-भोग की होती है। राजनीतिक काम करते हुए दानिशमंद लोग अक्‍सर सुख-सुविधा के साथ जीने की कोई न कोई राह निकाल ही लेते हैं। और फिर नौबत यह आती है कि वे बस वक्‍त काटने लगते हैं। वक्‍त काटने वालों की यह फितरत होती है कि यदि कोई दूसरा कुछ नया करने की ईमानदार कोशिश करता है तो उसमें पलीता लगाते रहते हैं या कीलें चुभाते रहते हैं।

हर हाल में मेहनत और सादगी का जीवन बिताना और साथियों के साथ समानता का नज़रिया अपनाना कोई आसान बात नहीं है।

एक सच्‍चा कम्‍युनिष्‍ट कभी भी फिर से शुरुआत कर सकता है।

एक सच्‍चा कम्‍युनिष्‍ट मेहनतकशों की ज़ि‍न्‍दगी के निकट जाने और उनसे एकरूप होने की कोशिश कभी नहीं छोड़ता। ज़ि‍न्‍दगी में आरामतलबी का भटकाव आता ही रहता है। जब गतिरोध के अन्‍धरकारमय दिन होते हैं तो मन में थकान गहरी हो जाती है और आराम फरमाते हुए हम सुविधाभोगी हो जाते हैं। सच्‍चा कम्‍युनिष्‍ट वह है जो अपनी इस कमज़ोरी को समय रहते पहचान ले और दूर करने के लिए जुट जाये। 

बेहतर है कि मैं भी नसीहतबाज़ी करने के बजाय अपनी ज़ि‍न्‍दगी की पड़ताल करूं और एक सहृदय, सच्‍चा, मेहनती इंसान बनने की कोशिश करती रहूं। 

2 comments:

  1. घास

    मैं घास हूँ
    मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊंगा
    बम फेंक दो चाहे विश्‍वविद्यालय पर
    बना दो होस्‍टल को मलबे का ढेर
    सुहागा फिरा दो भले ही हमारी झोपड़ियों पर
    मुझे क्‍या करोगे
    मैं तो घास हूँ हर चीज़ पर उग आऊंगा
    बंगे को ढेर कर दो
    संगरूर मिटा डालो
    धूल में मिला दो लुधियाना ज़िला
    मेरी हरियाली अपना काम करेगी...
    दो साल... दस साल बाद
    सवारियाँ फिर किसी कंडक्‍टर से पूछेंगी
    यह कौन-सी जगह है
    मुझे बरनाला उतार देना
    जहाँ हरे घास का जंगल है
    मैं घास हूँ, मैं अपना काम करूंगा
    मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊंगा।

    अवतार सिंह 'पाश'

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  2. एक सच्‍चा कम्‍युनिष्‍ट मेहनतकशों की ज़ि‍न्‍दगी के निकट जाने और उनसे एकरूप होने की कोशिश कभी नहीं छोड़ता। ज़ि‍न्‍दगी में आरामतलबी का भटकाव आता ही रहता है। जब गतिरोध के अन्‍धरकारमय दिन होते हैं तो मन में थकान गहरी हो जाती है और आराम फरमाते हुए हम सुविधाभोगी हो जाते हैं। सच्‍चा कम्‍युनिष्‍ट वह है जो अपनी इस कमज़ोरी को समय रहते पहचान ले और दूर करने के लिए जुट जाये।

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