Saturday, January 01, 2011

बाज़ार (दो) कविताएँ



(एक )
हामिद के बेटे
गए थे बाज़ार।
अंधेरे कोने में कहीं   
जंग खा रहा था 
वह चिमटा
जो मेले से लाया था
हामिद
दादी अमीना के लिए।




(दो)
बर्फबारी हो रही थी
बाज़ार में
बमबारी से भी बुरी।
घर में
मद्धम ऑच पर
सिंक रही थी ज़िन्‍दगी
राहत पाने के लिए थी
सिर्फ गर्म-ताज़ा रोटियों की गंध।

1 comment:

  1. हामिद के बेटे
    गए थे बाज़ार।
    अंधेरे कोने में कहीं
    जंग खा रहा था
    वह चिमटा
    जो मेले से लाया था
    हामिद
    दादी अमीना के लिए।

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