(एक )
कामना है कि
प्रेम की मृत्यु
भले हो बार-बार
विश्वास की मृत्यु न हो
फिर कभी,
एक बार भी।
(दो)
कामना है कि
पथ-प्रदर्शक भले ही न मिलें
महान,
या नेता गुणों की खान,
दोस्त मिलें सच्चे, नादान।
मुहावरों के प्रेमी ही रहें
दानेदार दुश्मनों के साथ,
हम तो उठाएंगे मुसीबतें
मूर्ख, नादान दोस्तों के हाथ,
रहेंगे
ज़िन्दगी की
तमाम-तमाम परेशानियों के साथ।
(तीन)
कामना हो भावना नहीं
भावना हो कार्यक्रम नहीं
कार्यक्रम हो योजना नहीं
योजना हो विचार नहीं
विचार हो भावना नहीं
भावना हो कामना नहीं
तो?
(चार)
चलती चली आये
बर्फ लदे पहाड़ों की एक कतार
मेरे रसोई घर तक
रोशनी की एक किरण
मेरे सोने के कमरे के
सबसे अंधेरे कोने तक,
सोचने की शक्त्ति
मेरे पढ़ने की टेबुल तक ,
सपने मेरे विचार तक
विचार कार्यवाहियों तक
और हॉ, भला यह मैं
क्यों भूल गयी
कि प्यार मेरे हृदय तक
-- कविता कृष्णपल्लवी
कामना हो भावना नहीं
ReplyDeleteभावना हो कार्यक्रम नहीं
कार्यक्रम हो योजना नहीं
योजना हो विचार नहीं
विचार हो भावना नहीं
भावना हो कामना नहीं
तो?