Saturday, December 18, 2010

खुद से हारने वाले लोग



'कोशिश करने वालों की हार नहीं होती'- एक पुरानी बम्‍बइया मसाला फिल्‍म की ये पंक्‍ितयॉं हैं जो मुझे प्रिय हैं। इस फिल्‍म का एक पात्र  अपने बच्‍चों को यह शिक्षा देता है, पर ऐसा समय आता है कि वह खुद अपने देशभक्‍त साथियों के साथ्‍ा गद्दारी कर बैठता है। कभी-कभी मानवीय कमजो़री की ढलान हमारे व्‍यक्‍ितत्‍व को पतन और विघटन के मुकाम तक पहुँचा देती है।
इससे भी ख़तरनाक बात यह होती है कि हमारी प्रतिबद्धता कभी-कभी एक घिसा हुआ सिक्‍का बन जाती है। हम क्रांतिकारी बातों का तोतारटंत करते रहते हैं और हमारा अपना व्‍यहार तुच्‍छता, चालाकी, दुनियादारी से भर जाता है। तब हमें इस बात का महत्‍व पता चलता है कि माओ-त्‍से-तुंङ ने क्‍यों कहा था कि चीजों को बदलने की प्रक्रिया में हमें स्‍वयं को भी बदलना होता है। यदि चीजों को बदलने की कोशिश में लगे हुए लोग खुद भी बदलते नज़र नहीं आते तो इसका मतलब यह है कि बदलाव की प्रक्रिया में ताजा़ मन से और प्रयोगधर्मिता के साथ लगे होने के बजाय वे बस घिसट रहे हैं। मरे मन से दुनिया को बदलने का काम नहीं किया जा सकता। ऐसा करने वाले कालांतर में या तो मैदान छोड़ देते हैं या फिर क्रांतिकारी बदलाव के कामों को ही गृहस्‍थों और क्‍लर्कों जैसा रुटीनी जीवन या व्‍यक्‍ितगत प्रसिद्धि और सुविधाओं का साधन बना लेते हैं। जो यह भी नहीं कर पाते वे एलियनेशन और डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं। दुनिया को बदलने का स्‍वप्‍न पाले हुए जो लोग अपने को बदलने की लड़ाई बार-बार हारते रहते हैं, वे या तो डिप्रेशन में चले जाते हैं या फिर ख्‍़ातरनाक हदों तक चालाक, बेरहम और बेशर्म बन जाते हैं। ऐसे लोग मार्क्‍सवाद के प्रति निष्‍ठा की दुहाई देते हुए भी बस अपने प्रति ही निष्‍ठावान रह जाते हैं।

1 comment:

  1. ख़तरनाक बात यह होती है कि हमारी प्रतिबद्धता कभी-कभी एक घिसा हुआ सिक्‍का बन जाती है। हम क्रांतिकारी बातों का तोतारटंत करते रहते हैं और हमारा अपना व्‍यहार तुच्‍छता, चालाकी, दुनियादारी से भर जाता है।

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