आग है
फिर-फिर आविष्कृत
एक आदिम राग।
कहती हुई
जाग! जाग!!
(दो)
आग
एक बेहद पुरानी चीज़ है
मनुष्य के लिए
मगर उतनी ही जरूरी।
बेशक
उसे दहकाने के तरीके
ईजाद होते रहे हैं
नये-नये।
आग की जरूरत से इंकार
बदलाव से इंकार है।
जीवन की विदाई है
आग के लिए विदा गीत ।
मृत्यु की अभ्यर्थना है।
(तीन)
चूल्हे बुझ चुके हों
जिस बस्ती में
हमेशा के लिए।
वहां कोई नहीं होता
मुसाफिर का
स्वागत करने के लिए।
चूल्हों का बुझना
जीवन का बुझ जाना है।
(चार)
मगर एक तीली भी
बची हो कहीं,
तो फिर से
जीवित की जा सकती है आग।
लपटों के नृत्य पर
तरंगित हो सकता है जीवन
फिर से ।
- कविता कृष्णपल्लवी
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